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Wednesday 12 September 2012

राजनितिक पार्टी और कानून ..


राजनितिक  पार्टी के लिए कोई कानून नहीं ...

देश का शायद ही ऐसा कोई विभाग, संस्था, कार्यालय, कोर्पोरेट, फेक्ट्री, ट्रस्ट, अदालतें या आप कह सकते हैं कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अलावा मिडिया हाउस जिसके लिए कानून ना हो ! इन सभी के लिए हमारे देश में कानून है और दोषियों को दंड देने का प्रावधान भी ! लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में राजनितिक पार्टी के लिए कोई कानून नहीं है ! पिछ
ले कुछ दिनों से राजनितिक गलियारों और मिडिया हाउस में यह चर्चा जोरों से चल रही है किस-किस पार्टी के पास कितना धन है ! और वर्ष 2004 से 2011 तक में कितना इजाफा हुआ है ! इस चर्चा में एक बड़ी बात यह भी उभर कर सामने आई कि अस्सी प्रतिशत पैसे/दान बेनामी हैं ! मतलब पार्टी को नहीं पता कि किसने पैसे दिए ! अब कोई कानून नहीं है तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि राजनितिक पार्टियां इसके बदले सरकार को टेक्स भी नहीं देती होंगी ! राजनितिक पार्टियां आरटीआई के अधीन भी नहीं होंगी ! पार्टी के इस अकूत धनों कि ऑडिट भी नहीं होती है ! मतलब पैसा किस मद में कब-कब खर्च किया जाता है इसका कोई लेखा-जोखा नहीं !
अब आते हैं दूसरे पहलु पर चुकी यहाँ (राजनितिक पार्टी) कोई कानून ही नहीं है इसलिए खुल्लम-खुल्ला मर्जी चलती है ! जी हाँ अगर किसी छोटे नेता ने कुछ बोला तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है ! अगर वह सच भी है और पार्टी के प्रति इमानदारी से समर्पित भी है तो उसकी कुछ नहीं चलेगी और वह किसी न्यायालय के शरण में भी नहीं जा सकता है ! मतलब वह मुकदमा जित कर वापस उस पार्टी में नहीं बहाल हो सकता है ! यहाँ तक कि पार्टी के शीर्ष अधिकारी और नेतागन जब चाहे जिसे चाहे उखाड़ बाहर फेंक दें ! कोई सदस्य को पार्टी से निलंबित किया जाय या सदस्यता समाप्त कि जाय उसके पास कोई विकल्प नहीं है ! आप देश के किसी भी सरकारी या प्राईवेट संस्था में काम करते हैं तो वहाँ आपको ऐसे नहीं निकाला जा सकता है और अगर निकाला गया तो आप अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं लेकिन राजनितिक पार्टियों के खिलाफ देश कि कोई भी अदालत में आप अपील नहीं कर सकते हैं ! हर राजनितिक पार्टियों में अच्छे नेता हैं लेकिन वह इसलिए भी अपने शीर्ष नेता वो पधाधिकारी का विरोध नहीं कर पाते हैं क्योंकि उन्हें बिना देर किए बाहर का रस्ता दिखा दिया जाएगा ! कानून नहीं होने के कारण ही आज रानीतिक में परिवारवाद हावी है !
राजनीतिज्ञ विश्लेषकों का कहना है कि अगर राजनितिक पार्टी के लिए कानून नहीं बनाया गया तो यह देश के लिए बहुत बड़ा खतरा होगा ! पार्टियां मालामाल होती जाएंगी और जनता कंगाल होता जाएगा ! यही नहीं कानून बनने पर नेताओं और पार्टियों कि मनमर्जी पर भी लगाम लगेगा और एक स्वच्छ राजनीति का माहोल बनेगा !!

Tuesday 4 September 2012

मोदी, नितीश और राज ठाकरे !!



अमर शहीद स्मारक तोड़ने वाले आरोपी अब्दुल कादिर की मुम्बई पुलिस दुवारा बिहार पुलिस को बिना सूचित किए गिरफ़्तारी राज्य के संघीय ढांचे पर प्रहार नहीं तो और क्या है ? जब एक ही राज्य में एक जिले की पुलिस दूसरे जिले में आरोपी को पकड़ने जाती है तो इसकी सूचना उक्त जिला की पुलिस को दी जाती है फिर ये तो राज्यों का मामला है ! इसके पूर्व कर्नाटका पुलिस ने भी संघीय ढांचे और राज्यों के अधिकार को चुनौती देते हुए बिहार से एक आतंकी को गिरफ्तार किया था ! राज ठाकरे के बयान ने देश में तो खलबली मचाई ही साथ ही मोदी समर्थकों को नितीश के खिलाफ फिर जहर उगलने का मौका दिया है ! एनडीए में प्रधानमन्त्री के दौड़ में नरेंद्र मोदी और नितीश कुमार दोनों प्रबल दावेदार के रूप में उभर रहे हैं ! ऐसे में राज ठाकरे का यह बयान कही सुनियोजित तरीके से मोदी को फायदा पहुचने वाला तो नहीं ! राज ठाकरे इतने अनजान तो नहीं की उन्हें राज्य के अधिकार के बारे में पता ना हो ! सत्ता के गलियारों में यह चर्चा भी जोरों पर है की इस बार ठाकरे ने मोदी को फायदा पहुचने के उद्देश्य से ही पुरे बिहारियों को टारगेट किया है ! राज ठाकरे के बयान से मोदी समर्थक नितीश कुमार को आतंकवाद का समर्थक बताने में जरा ही संकोच नहीं कर रहे हैं ! फेसबूक के कई ग्रुप में नितीश के खिलाफ ऐसे पोस्ट/कमेन्ट किए जा रहे हो जैसे नितीश कुमार ने अब्दुल कादिर की गिरफ्तारी पर आक्रोश जताया हो और आतंकवाद के समर्थन की वकालत की हो ! इतना ही नहीं मोदी जी के अंध समर्थक नितीश कुमार को ही देशद्रोही साबित करने पर तुल गए हैं ! और तो और पढ़ा लिखा तबका भी नितीश के खिलाफ ऐसे बोल रहा है मनो उन्हें संघीय ढांचा और राज्य के अधिकारों के बारे में कुछ पता ही नहीं है ! दूसरे राज्यों की बात अगर छोड़ दे तो कई बिहारी भी इस बात को लेकर मोदी की गुणगान और नितीश जी के बारे में टिप्पणी करने से परहेज नहीं कर रहे हैं ! खैर जो भी हो नितीश जैसी छवि बनाने के लिए मोदी जी को अभी और वक्त लगेगा ! दूसरी बात राज ठाकरे जैसे लोग सस्ती लोकप्रियता लुटने और मिडिया में छाये रहने के लिए ऐसे बेतुकी बयान देते हैं ! ध्यान रहे नितीश जी ने गिरफ़्तारी के तरीके पर रोष प्रकट किया था ना की अब्दुल कादिर की गिरफ्तारी पर ........

Saturday 1 September 2012

तिरुपति बालाजी, भक्त और तीन सौ रूपये !!


सिनेमा-सर्कस देखने को टिकट लगता है तो बात समझ में आती है क्योंकि वह व्यापार है ! लेकिन अपने ईश्वर से मुलाकात के लिए भी पैसा देना सुनकर आपको थोडा अटपटा लगता होगा ! लेकिन यह सच है जी हाँ भारत के सबसे धनी देवता तिरुपति यूँ ही अकूत संपत्ति के मालिक नहीं बन गए बल्कि उनके दर्शन के लिए भक्तों से वसूले जा रहे पैसों से भी तिरुमला ट्रस्ट को अच्छी खासी इनकम होती है ! मुझे संयोग से मेरे मित्रों के साथ वहाँ जाने का मौका मिला ! लेकिन मैंने तिरुपति बालाजी का दर्शन नहीं किया ! क्योंकि वहाँ दर्शन के लिए तीन सौ रूपये का टिकट कटाना अनिवार्य था ! पहले आठ से दस घंटे लाइन लगो फिर तीन सौ रूपये के टिकट लो फिर बालाजी का दर्शन करो ! हालाँकि बिना टिकट कटाने वालों को बालाजी के दर्शन के लिए दो-तीन दिन तक लाइन में खड़े रहना पड़ता है ! ये बात मुझे नागवार गुजरी, मेरे मन में ये सवाल उठने लगा की यह रिश्वत नहीं तो और क्या है ? आखिर मैं भगवान के दर्शन के लिए तीन सौ रूपये क्यों दूँ ! मैंने दर्शन नहीं करने की ठान ली, मेरे दोस्तों ने मुझे काफी समझाया लेकिन मेरी अंतरात्मा इस बात के लिए तेयार नहीं हुई ! जब लोग  कहते हैं की वो सब जगह हैं तो मैं कहीं से भी आराधना कर सकता हूँ ! मैंने मंदिर के बाहर से ही भगवान को प्रणाम किया ! मुझे दुःख इस बात को लेकर हुयी की आखिर भगवान के दर्शन के लिए भी पैसे क्यों ? मेरे इस बात से मेरे परचित मुझे नास्तिक की संज्ञा देंगे, लेकिन मुझे इसका मलाल नहीं क्योंकि मैंने कुछ गलत नहीं किया ! हालाँकि की ट्रस्ट चलने के लिए पैसों की जरुरत होती है ! वहाँ भक्तों को जो सुविधाए मुहैया कराई जाती है और मेंटेनेंस में प्रतिदिन लाखों का खर्च आता है वह आखिर कहाँ से आएगा ! लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं की आप सभी से एक समान वसूली करो ! भगवान के दर पर तो हर तबके के लोग जाते हैं फिर सबके लिए टिकट जरुरी क्यों ? और दान या चंदा का क्या मतलब होता है ! जो खुशी से दे वही दान/चंदा होता है ना की फिक्स कोई रेट ! अगर आप रेट फिक्स करते हो तो वह प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से व्य्यापार नहीं तो और क्या है ! जो सक्षम लोग हैं उनसे ही पैसा लिया जाय ! अब जो उस लायक नहीं है उसके लिए भी यह अनिवार्य नहीं होना चाहिए ! लोगों की असीम श्रद्धा है इसलिए लोग बिना किसी सवाल जवाब के तीन सौ रूपये देकर दर्शन करने को मजबूर हैं ! अजीब बात यह है की सरकार भी इन ट्रस्ट के सख्त नियमों पर कोई ध्यान नहीं देती !

पोस्ट/कमेन्ट


इसमें मेरी क्या गलती है कि मैं जब भी कुछ लिखता हूँ अक्सर कुछ लोगों को बुरी लग जाती है ...जबकि मेरा इरादा किसी को तकलीफ पहुचने का नहीं होता है ....खैर, मैं अक्सर देखता हूँ कि फेसबुक पर पुरुषों कि अपेक्षा महिलाओं दुवारा किये गए पोस्ट पर ज्यादा कमेन्ट आते हैं और उसमे सबसे अधिक भागीदारी भी पुरुष वर्गों कि होती है , क्षमा कीजियेगा महिलाये इसे दूसरे अर्थ में ना ले , किसी महिला का एक पोस्ट ज्यों ही आता है चाहे वो तथ्यविहीन ही क्यों न हो, उस पोस्ट पर सबसे पहले कमेन्ट करने को लेकर पुरुष वर्ग (जिसमे मैं भी शामिल हूँ) में ऐसी होड सी मच जाती है जैसे प्रथम विश्वयुद्ध के पहले पुरे दुनिया में उपनिवेशवाद कि होड मची थी , आपको यकीं नहीं होगा हम पुरुष वर्ग के बीच अच्छे-अच्छे पोस्ट पड़े होते है लेकिन हम महिलाओं के पोस्ट को प्राथमिकता देते हैं ....अब कोई यह कमेन्ट मत कीजियेगा कि हम महिलाओं का सम्मान करते हैं ...क्योंकि मैंने देखा कि कितने फेक आईडी के पीछे ही सिर्फ नाम और तस्वीर देख कर कमेन्ट कि बाढ़ आ जाती है ....कम से कम २४ घंटे में दो बार ऐसा तो जरुर होते देखता हूँ मैं ...पहला सुबह को जब किसी महिला के दुवारा गुड मार्निंग कहा जाता है दूसरा रात को जब गुड नाईट लिखती है ......इन दोनों पोस्ट पर कमेन्ट का तूफ़ान इस कदर आता है कि पूछिए मत ....जबकि पुरुष वर्ग के सदस्यों के दुवारा हाय, हेल्लो, गुड मार्निंग और गुड नाईट लिखने पर गिने-चुने महिला वर्ग के सदस्यों का भी कमेन्ट नहीं आता है ...ऐसे में क्या कहा जाय .....कि हाल के वर्षों में पुरुषों कि मानसिकता में काफी बदलाव आया है या हमारे पुरुषत्व कि नीव कमजोर हो रही है ..
फेसबुकिया समाजसेवी और तस्वीर ...

बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं था आज सोचा कुछ लिख ही डालूं ! मैं कई दिनों से देख रहा हूँ कि फेसबूक संस्थाए जो समाज सेवा का काम बेहतर तरीके से करती है और अपने-अपने ग्रुप में फोटो भी जमकर छापती ह
ै के तस्वीरों में वो गुणवत्ता नजर नहीं आती जिसे देख कर लोग अत्यधिक प्रभावित हो सके ! आज तक जो मैंने इस चीज को लेकर चिंतन किया इसकी एकमात्र वजह यह उभर कर सामने आया कि फोटो में अधिकांश सदस्य अपने आप को दिखाना चाहते हैं ना कि संस्था के वास्तविक कार्य को और फोटो देख कर ऐसा लगता है जैसे वो सच्चे दिल से काम नहीं कर रहे हैं बल्कि अपनी व्यक्तिगत वाहवाही लुटने के लिए ही काम करते हैं ! चुकी सोच ऐसी है इसलिए शायद फोटो भी ऐसा ही देखने को मिलता है ! वास्तविकता यही है कि ग्रुप में काम के साथ-साथ सदस्यों कि व्यक्तिगत फोटो भी छापी जाती है जिसमे उनके कार्य से सम्बंधित या कार्य करते हुए कुछ नहीं दीखता है ! मैं पिछले एक साल से अधिकांश हरेक ग्रुप कि यही स्थिति देख रहा हूँ ! मुझे मलूम है कि मेरे इस पोस्ट पर काफी टिका-टिप्पणी होगी, लेकिन यह हकीकत है ! मेरी राय है कि जब भी आप किसी कार्यक्रम कि तस्वीर खींचते हैं कृपया कुछ एतिहात बरते और नेचुरल फोटो ही खींचे और ग्रुप में पोस्ट करे ! किसी भी जनहित कार्यक्रम की फोटो कभी ऐसा नहीं दिखना चाहिए कि हम फोटो खिंचवा रहे हैं ! लोग आपकी तस्वीर को देख कर प्रभावित नहीं होंगे हाँ आपके दुवारा किये जा रहे कार्य कि तस्वीर कोई लोग पसंद करेंगे ! हाँ व्यक्तिगत फोटो है तो उसे अपने निजी वाल पर शेयर करे..ना कि ग्रुप में अपनी कार्य को प्रदर्शित करने के लिए .........

गुलाबी गेंग ....



संपत पाल देवी को सलाम !!

आज हर गांव में जरुरत है ऐसे गेंग की ...

जी हाँ निचे दी गयी तस्वीर किसी फिल्म शूटिंग में भाग लेने आई महिलाओं या एक ड्रेस में किसी कम्पनी/आफिस में कार्य करने वाली महिलाओं का नहीं है ! बल्कि यह ग्रुप है "गुलाबी गेंग"

की .....यह ग्रुप महिलाओं पर हो रहे आत्याचार करने वालों पर कहर बनकर टूटती है ! यही नहीं महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए कटिबद्ध इस ग्रुप ने कई हैरतंगेज कारनामे को अंजाम देकर महिलाओं पर जुल्म ढाने वाले वहसी/दरिंदों को खुद पंचायत लगायी और सजा भी सुनाई ! गुलाबी साड़ी इनका ड्रेस है ! बुंदलेखंड के सात जिलों में सक्रिय इस गेंग के सदस्या हमेशा गुलाबी साड़ी और हाथ में डंडा धारण किए इस गेंग को जब भी किसी महिला के साथ हो रहे अत्याचार के बारे में पता चलता है पूरा का पूरा गेंग बिना देर किए वहाँ पहुच जाते हैं ! इस ग्रुप में करीब बीस हजार से अधिक सदस्य हैं और सदस्यों कि संख्या दिन वो दिन बढती ही जा रही है ! "गुलाबी गेंग " कि संस्थापक श्रीमती संपत पाल देवी जिनकी उम्र चालीस वर्ष है कि शादी बारह वर्ष में ही एक आईसक्रीम बेचेने वाले वेंडर से हुयी, उनकी पांच संताने है !
आज देश के हर गांव में ऐसी ही एक गेंग कि जरुरत है जो महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर सके और न्याय दिला सके !

Wednesday 29 August 2012

बिहार और आतंकवाद !!



खुदा का लाख-लाख शुक्र है की अब तक आतंकी घटना से हमारा बिहार बचा हुआ है ! लेकिन जिस तरह से यह आतंकियों का पनाहगार बना हुआ है यह बेहद ही चिंता का विषय ! पिछले कुछ वर्षों से बिहार से आतंकियों की हुयी गिरफ्तारी इस बात को बल देता है की बिहार आतंकियों के छिपने का महफूज जगह है ! इसके एक नहीं कई उदाहरण है ..मुम्बई हमला और या दिल्ली और कर्नाटक में आतंकी हमला या फिर मुम्बई में देशद्रोहियों दुवारा अमर शहीद स्मारक को तोड़ने का मामला ! इन सभी कांडों के आरोपियों की गिरफ्तारियां होना स्पष्ट संकेत देता है की बिहार में ऐसे गुनेह्गारों को शरण दी जाती है ! आज अब्दुल कादिर (मुंबई शहीद स्मारक तोड़ने के आरोपी) की सीतामढ़ी से गिरफ्तारी , इसके पूर्व दरभंगा और किशनगंज से आतंकियों की गिरफ्तारी से यह तो तय है की आतंकी ऐसे वारदातों को अंजाम देने के बाद सीधे नेपाल जाने के लिए बिहार की और रुख करता है ! पहले बिहारियों पर गुंडागर्दी और अपराध करने का आरोप लगता रहता था, लेकिन अब तो बिहार के सर पर आतंकियों को संरक्षण देने का भी काला धब्बा लग रहा है ! जिस तरह से आतंकियों को बिहार में संरक्षण देने की घटना बढ़ रही है यह एक दिन हम बिहारियों को ही भारी पड़ेगा ! क्योंकि इतिहास गवाह है की ऐसे लोग (आतंकी) किसी के नहीं होते हैं ! केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकार को इस गंभीर मुद्दों को लेकर ठोस रणनीति बनानी चाहिए ! कई आतंकी पाकिस्तान से भारत आने के लिए नेपाल की और रुख करता है और वाया बिहार होकर देश के अन्य शहरों में आराम से आता-जाता है ! बिहार से सटे नेपाल की सीमा पर जांच-सुरक्षा में कारगर पुख्ता व्यस्था करने की जरुरत है ! बोर्डर पर एसएसबी जवानों को और अधिक मुस्तेद करने की जरुरत है ! और ऐसे लोगों का सामजिक बहिष्कार भी जरुरी है जो आतंकियों को पनाह देते हैं !!

जय हिंद !!

Sunday 26 August 2012

फेसबूक और नरेंद्र मोदी !!

सोशल मिडिया यानी फेसबूक का जितना फायदा नरेंद्र मोदी उठा रहे हैं उतना ही इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है ! फेसबूक के हर ग्रुप में सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी को इस कदर प्रस्तुत किया जा रहा है मानों उनके प्रधानमन्त्री बनते हि भारत से सारे अल्पसंख्यक को या तो पाकिस्तान भेज दिया जाएगा या फिर किसी राहत शिविर में और देश में फैली भ्रस्टाचार और व्याप्त असंतोष चुटकी में खत्म हो जायेगा ! हर मुद्दों को मोदी से जोड़कर ऐसे बताया जाता है जैसे उनके शासनकाल में कुछ भी गलत नहीं होगा ! ऐसा लगता है जैस मोदी को प्रधानमन्त्री की कुर्सी नहीं बल्कि कोई जादुई चिराग हाथ लग जायेगा जिसे घिसते ही जिन्न निकल कर देश की समस्याओं का तुरंत समाधान कर देगा ! वह जिन्न भारत में विकास की लहर ला देगा ! मुझे तो कभी-कभी हंसी आती है ऐसे पोस्ट और कमेन्ट देख कर ! सोशल मिडिया के उपयोग की रणनीति में मोदी सफल होते भी दिखाई दे रहे हैं ! आरएसएस, भाजपा और विद्यार्थी परिषद से ताल्लुक रखने वाले कुछ कट्टर मोदी समर्थक अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर
्वाह करते हुए हर तरफ सिर्फ और सिर्फ मोदी से सम्बंधित सकारात्मक पहलु ही परोस रहे हैं ! अन्य राजनेताओं की एक-एक छोटी-छोटी गलती को भी मोदी समर्थक इस तरह बढ़ा-चढा कर पेश कर रहे हैं जैसे मानों सचमुच वह देश के सबसे बड़े दुश्मन हों ! यहाँ तक कि बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जिन्होंने काफी कम समय में विकास के मामले में गुजरात को भी पछाड दिया उनके बारे में ऐसे बताया जा रहा है जैसे राजनीति में मोदी उनसे वरिष्ट हो और मोदी के पहले और अब तक भारतीय राजनितिक इतिहास में किसी विकास पुरुष ने पैदा ही नहीं लिया हो ! वर्तमान समय में स्थिति यह है कि सोशल मिडिया पर नरेंद्र मोदी को इतना अधिक प्रचलित किया जा रहा है जैसे वो वाजपेयी, आडवाणी, सुषमा स्वराज से भी अनुभवी और प्रखर नेता हो ! इस फेसबूक के माध्यम से ना केवल यूपीए को हडकाया जा रहा है बल्कि भाजपा में उनकी गहरी पैठ बनाने की भी सफल कोशिश जारी है ! वैसे मैं भी नरेंद्र मोदी के अच्छे कार्यों का जोरदार समर्थन करता हूँ , लेकिन अंधभक्त नहीं ....इस पोस्ट को पढ़ कर कुछ लोगों को आपत्ति होगी लेकिन मुझे इसका कोई मलाल नहीं क्योंकि यह हकीकत है ....

Thursday 23 August 2012


अपनी बातें !!

टोपी, इफ्तार और मुस्लिम हितेषी ......

अगर टोपी पहनने वाला ही मुसलमान का हितेषी होता है तो मैं देखावटी टोपी कभी ना पहनूं , अगर कोई सिर्फ इफ्तार पार्टी का आयोजन कर या शामिल होकर अल्पसंख्यक का हितेषी बनता है तो मैं कभी इफ्तार पार्टी का ना तो आयोजन करूँ और ना ही ऐसे आयोजनों में शामिल होऊ ! क्योंकि मैंने देखा है कि लोग टोपी लगा कर सिर्फ हितेषी होने का ढोंग करते हैं अब आप ही बताइए कि क्या सिर्फ टोपी पहनने से भला कोई मुस्लिम का हितेषी हो सकता है ? अगर कोई बिना टोपी पहने ही मुस्लिम भाई के लिए अच्छी सोच रखे और उनकी मदद करे तो क्या वो उनका शुभचिंतक नहीं हो सकता ? मैंने देखा है कई लोगों के इफ्तार पार्टी सिर्फ हाय-फाय प्रोफाईल के लिए होती है वहाँ दो तरह के आयोजन होते हैं एक वीआईपी के लिए जहाँ दर्जनों व्यंजन होते हैं और दूसरी और निर्धन के लिए सिर्फ खानापूर्ति ..यही नहीं उन गेट या पंडाल के अंदर वैसे रोजेदारों को प्रवेश तक करने नहीं दिया जाता है जिन्हें रोजे के बाद ठीक से भोजन भी नसीब नहीं होता है .अब आप ही बताइए ऐसे इफ्तार दिखावटी नहीं तो और क्या है ? आखिर इफ्तार रोजेदारों के लिए आयोजित होता है तो फिर दिन भर खाने वाले लोग इफ्तार में क्यों खाते हैं ? लोग कहेंगे की साथ देने के लिए ..अब मेरा सवाल की अगर साथ ही देना है तो दिन भर रोजा रखो फिर इफ्तार में शामिल होकर दिखाओ ? अगर फूटपाथ पर पड़े असहाय या कमजोर रोजेदारों को शाम में भोजन करा दें तो क्या वह अल्पसंख्यक का हितेषी नहीं होगा ?

Tuesday 14 August 2012

 
अपनी बातें !!

अजमल कसाब को पकड़ा था तुकाराम ओम्बले ने , शत्-शत् नमन !!

जी हाँ आज हम देश कि आजादी का जश्न मना रहे हैं, लेकिन हम सिर्फ शहीदों को नारों तक ही सिमित रख रहे हैं ! आजादी के बाद भी कई पुलिसकर्मियों ने देश कि आंतरिक सुरक्षा में अपने जान गंवाए ! जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ उस महान साहसिक विभूति तुकाराम ओम्बले की , जिसके कारण ही आज कसाब जैसा खूंखार आतंकवादी जेल में बंद है ! जी हाँ मुम्बई पुलिस में सब इन्पेक्टर के पद पर तैनात ओम्बले गिरग्म चौपाटी पर तैनात थे, वहाँ नाकेबंदी कर दी गयी थी, तभी कसाब और उसके अन्य एक साथी कार से उस और से भाग रहे थे, वहाँ तैनात पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया ! इस दौरान मुंबई पुलिस कि गोली से एक आतंकी मारा गया जो कार चला रहा था ! कार लड़खड़ा गयी और कसाब बाहर सडक पर आ गिरा ! इसे देखते ही पुलिस उसे लपकने के लिए दौड़ पड़ी, लेकिन कसाब ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी ! अन्य पुलिसकर्मी इधर-उधर छिप गए, लेकिन ओम्बले ने दम नहीं मारी और कसाब कि और उनके कदम बढते चले गए ! इस दौरान उन्हें कई गोलियाँ लगी लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कसाब को धार दबोचा और हाथापाई शुरू हो गयी ! इसे देख अन्य पुलिसकर्मी भी उस और लपके तथा कसाब को धार दबोचा ! इधर अस्पताल जाते-जाते ओम्बले कि मौत हो गयी और वो शहीद हो गए ! उन्हें मरणोपरांत " अशोक चक्र " से सम्मानित किया गया ! लेकिन सवाल यह क्या कसाब जब तक जिन्दा रहेगा तब तक उनकी आत्मा को शान्ति मिलेगी ? आइये इस पवन मौके पर शहीद ओम्बले के साथ-साथ उन शहीदों को भी नमन करे और सच्ची श्रद्धांजली दें जिन्होंने देश कि रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिया ..................


बंदे मातरम !!
रूपेश झा

Friday 1 June 2012

रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या से फेसबुक पर भी छिड़ी जातिवाद की बदजुबानी जंग :((

जी हाँ आज तडके सुबह रणवीर सेना प्रमुख रहे ब्रह्मेश्वर मुखिया कि हत्या कि घटना ने बिहार के कुछ इलाकों को जमीनी तौर पर तो झकझोर कर रख ही दिया, इसके साथ-साथ फेसबुक पर भी जातिवाद को लेकर एक नयी बहस और जंग छिड़ गयी है ! फेसबुक के कई ग्रुप में अगड़ा-पिछड़ा को लेकर राजनीति का माहोल गरम है .......
फेसबुक पर एक तबका दलित और पिछड़ा वर्ग पर हुए अत्याचार (नरसंहार) कि दुहाई दे रहा है तो दूसरा तबका उच्च वर्ग पर हुए अत्याचार के खिलाफ मुखिया जी के कदम का जोरदार समर्थन कर रहा है ....कोई उन्हें देश का सच्चा सपूत बता रहा है तो कोई उन्हें आतंकवादी ! एक समुदाय उसे श्रद्धांजलि दे रहा है तो दूसरा उनकी मौत पर जश्न मन रहा है, इस घटना ने करीब एक दशक बाद फिर से जातिवाद कि नीव को हिलाने का काम किया है ! दुखद पहलु यह है कि फेसबुक में कल तक जो सबकुछ भूल कर एक-दूसरे के हितेषी थे वो इस बात को लेकर आपस में भीड़ गए हैं, आज सुबह से इस बात को लेकर लगातार बहस छिड़ी हुयी है .....एक समुदाय का कहना है कि गीता में लिखा है अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाना जुर्म नहीं है बहादुरी का काम है, जबकि दूसरा तबका मुखिया जी कि हत्या को जायज ठहराते हुए उन्हें समाज का मुजरिम करार दे रहे हैं ! मुझे इस बात का भय सता रहा है कि कहीं यह घटना हमारे समाज के पिछले एक दशक से चली आ रही शान्ति और प्रेम में दरार पैदा ना कर दे .....

मेरे सभी फेसबुक मित्रों से विनम्र आग्रह है कि अपनी भावना और पूर्वाग्रह को सयमित तरीके से शालीन और भद्र शब्दों में व्यक्त करे और आपसी सौहार्द बनाये रखे .....

Tuesday 29 May 2012

अनाथालय में खाना खिलाने से बेहतर है बच्चो का भविष्य संवारे :))

कुछ लोग ख़ुशी और गम के मौके पर अनाथालय जाकर बच्चों को खाना खिलाते हैं, ताकि उन्हें उन बच्चों की दुआ मिल सके, यक़ीनन यह एक अच्छा कार्य है, लेकिन मैं इसका व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता हूँ, जहाँ तक मैं जानता हूँ की अनाथालय में सरकार के दुवारा बच्चों के भोजन की सुविधा मुहैया करायी जाती है, इसके अलावा हमारे-आपके तरह बहुत सारे लोगों की सोच खाना खिलाने की होती है, मैंने देखा है अनाथालय में एक-एक दिन में दस -दस परिवार के लोग खाना खिलाने पहुचते हैं, खासकर पर्व-त्यौहार में,...... मैं ऐसे लोगो की भावना की क़द्र करता हूँ, लेकिन जरा सोचिये की एक दिन में बच्चे कितने बार खायेंगे ?? खाना खिलाने का क्या इम्पेक्ट होगा ? क्यों ना हम उस पैसे से पढे-लिखाई का सामान, नोट बुक, स्टेशनरी, किताब आदि सामानों को खरीद कर दे, जरा सोचिये अगर हम एक हजार रूपये खाना खिलाने में खर्च करते हैं वह तनिक क्षण भर के लिए होता है, लेकिन इसके बदले उन्हें एक हजार रूपये की स्टेशनरी खरीद कर दे तो वह कितने दिनों तक चलेगा और यह सामान उन अनाथ बच्चों का भविष्य संवार सकता है , क्या हमें क्षणिक ख़ुशी और संतुष्टि के लिए कुछ दान देना चाहिए या ऐसे चीजो को प्रोमोट करना चाहिए जो उन्हें इस लायक बनाने में मदद कर सके जिस से की वो भविष्य में खुद कमा सके और खा सके...

Thursday 24 May 2012

सिल्क उद्योग का दर्द -3

डीएसपी मेहरा काण्ड से सरकार और बुनकरों के बिच बढती गयी दूरियां :(

बात 1987 की है, जब बिजली की मांग को लेकर "पावरलूम विभर्स एसोशिएशन" का आन्दोलन काफी तेज हो गया था, जिसका नेतृत्व अवध किशोर, नेजाहत अंसारी जैसे बुनकर नेता कर रहे थे, उसका कोई स्थाई समाधान नहीं निकला, सरकारी प्रतिनिधियों का कहना था की बिल का भुगतान नहीं किया जा रहा है, जबकि बुनकरों का कहना था की बिजली ही नहीं मिल रही है और बिजली विभाग मनमाना बिल भेज रही है, इसी साल के अंत में चम्पानगर की बिजली जो सिटिएस से आ रही थी उसके तार को काट दिया गया, जिससे चम्पानगर समेत दर्जनों मोहल्ले में बिजली संकट उत्पन्न हो गया, बिजली नहीं आने के कारन बुनकरों की स्थिति दयनीय हो गयी, बुनकरों ने "पावरलूम विभर्स एसोशिएशन" के बेनर तले आन्दोलन को और तेज कर दिया, इसी क्रम में 10 जनवरी 1987 को पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत बुनकरों की विशाल रैली चमपानगर सहित दर्जनों इलाके से निकलते हुए नाथनगर चौराहे स्थित सुभाष चन्द्र बोस चौक की तरफ बढ़ रही थी, इस से पूर्व ही अनुमान के आधार पर कई बड़े बुनकर नेताओं को एक दिन पूर्व ही हिरासत में ले लिया गया था, विधि व्यवस्था की कमान वहा के तत्कालीन डीएसपी सुखदेव मेहरा संभाले हुए थे, श्री मेहरा ने मनास्कमना नाथ चौक पर आन्दोलनकारी भीड़ को रोकने का प्रयास किया, लेकिन आक्रोशित भीड़ भला कहा रुकने वाली थी, इसी क्रम में फायरिंग शुरू हो गयी, जिसमे शशि और जाहांगीर नामक बुनकर की गोली लगने से मौत हो गयी, इसके बाद क्या आक्रोशित भी इस कदर बेकाबू हुयी की डीएसपी मेहरा को जिप (उनकी गाडी, जिस पर वो सवार थे ) सहित जला कर उनकी हत्या कर दी गयी, यह घटना सुनते ही जिला प्रशाशन के आलाधिकारी मौके पर पहुचे और कई बुनकर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ! यह घटना भागलपुर के लिए कला दिन जैसा था, इसके बाद सरकारी प्रतिनिधयों के बिच दुरी बढती चली गयी, कई बुनकर नेता ने जेल की सजा काटी और अब तक यह मामला आदालत में लम्बित है, इस घटना के बाद मानो सिल्क उद्योग पर ग्रहण ही लग गया .....

Wednesday 23 May 2012

सिल्क उद्योग का दर्द -2
यार्न बेंक का सपना अधुरा ...
इस शहर के रेशम उद्योग के पिछड़ने का एक सबसे बड़ा कारण यहाँ यार्न बेंक (सूत बेंक) की स्थापना नहीं होना है, बुनकरों को सूत/धागे दुसरे राज्यों/देशों से आयात करना पड़ता है, जो काफी महंगा पड़ रहा है, प्राप्त जानकारी के अनुसार रेशम सूत/धागे पर सरकार का इतना अधिक टेक्स/कर है कि बुनकरों को मज़बूरी में यह कालाबाजारी में खरीदारी करनी पड़ती है, क्योंकि सरकार के दुवारा सूत/धागा मुहेया नहीं कराया जा रहा है और ना ही वर्तमान सरकार ने इस दिशा में सार्थक पहल की है, नतीजा बुनकरों की मज़बूरी का फायदा उठा कर अभी भी भागलपुर में सिल्क धागों की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है, ख़ास कर चयन कोरिया कि तस्करी का धंधा जोरों पर है और बहुत बार ऐसा होता है की पार्टी दुवारा ऑर्डर मिलने के बाद भी धागा उपलब्ध नहीं होने के कारण बुनकर सही समय पर माल तेयार कर पार्टी को नहीं दे पाते हैं, आपको यकीन नहीं होगा कि सिल्क के तस्करी कर के बहुत सारे लोगों ने करोडो में काला धन अर्जित किया है, खैर, बुनकरों को सही कीमत पर धागा नहीं मिलने के कारण भी सिल्क उद्योग पर खतरा मंडरा रहा है, जब नितीश जी सरकार आई तो अख़बारों में यह समाचार पढने को मिला कि सरकार बुनकरों को सरकारी दरों पर सूत मुहेया कराएगी और इसी जिले के कहलगांव क्षेत्र में अप्रेल पार्क बनेगा, लेकिन ये बाते सिर्फ अखबारों के पन्नो और घोषणाओ तक सिमट कर रह गयी, अगर बुनकरों को सरकारी दरों पर सूत मुहेया कराया जाता तो निश्चित तौर पर इस उद्योग को काफी मदद मिलती, लेकिन यार्न बेंक स्थापना नहीं होना भी इस उद्योग कि बर्बादी के एक महतवपूर्ण कारणों में से एक है ......

Tuesday 22 May 2012

सिल्क उद्योग का दर्द -1

रेशमी शहर के नाम से मशहूर भागलपुर में तसर की खेती बड़े पैमाने पर होती थी, यहाँ शहतूत के पेड़ पर रेशम कीट का पालन होता था, रेशम कीट के मुह से निकलने वाली लार से कोकून तेयार होता था और उस से चरखे के माध्यम से तसर धागा तेयार होता था, इस से तेयार होने वाली तसर सिल्क भारत ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में चर्चित है, इस सिल्क ने रेशम वस्त्र उद्योग में अपनी गहरी पैठ बनायीं, करीब दो दशक पूर्व भागलपुर के बुनकरों दुवारा तेयार किया गए इस कपडे की एक अलग ही पहचान थी, तसर सिल्क के अंतर्गत मटका, घिच्चा, कटिया आदि आता था, नब्बे के दशक तक सिल्क वस्त्र उद्योग में भागलपुरी तसर सिल्क का दबदबा रहा , स्थानीय बुनकरों की माने तो उनके दुवारा तेयार किये गए रेशमी वस्त्र की मांग बाजारों में काफी अधिक थी, तब बुनकर इसे हस्तकरघा में तेयार करते थे, यहाँ के बुनकरों की कला भी अपने आप में निराली थी, लेकिन नब्बे के दशक के बाद विश्व बाजार में इसकी मांग घटने लगी इसकी वजह यहाँ खेती का दायरा सिमटता चला गया, सरकार की उदासीनता और रेशम कीट पालकों को प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण धीरे-धीरे किसानो की रूचि घटती चली गयी, इसकी स्पर्धा में बेंगलूर और उत्तर प्रदेश के कुछ शहर आगे निकल गया, क्योंकि वहा सरकार ने इस उद्योग को प्रोत्साहित किया, स्थिति यह हो गयी की रेशम कीट पालन अब सिर्फ यहाँ स्थित रेशम संसथान में होने लगा वह भी बुनकरों को प्रसिक्षण देने के लिए और वहा के क्षत्रों के प्रायोगिक कक्षाओं के लिए ! समय और प्रतिस्पर्धा के कारण धीरे-धीरे हस्तकरघा की जगह पावरलूम ने ले लिया, पावरलूम के आने के बाद उत्पादन में तो वृद्धि हुयी, लेकिन गुणवत्ता में भी गिरावट आई, वर्तमान समय में जिस रेशम के लिए यह शहर मशहूर था, वहां नाम मात्र इसका उत्पादन होता है, मिली जानकारी के अनुसार अभी बड़े पैमाने पर इस धागे का आयत किया जाता है, हालाँकि वर्तमान नितीश सरकार ने भी इस उद्योग को सँवारने में कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई है .....

Wednesday 9 May 2012

BSRTC
मेरी बिहार यात्रा पार्ट-3

जैसा की मैंने आपलोगों को बताया था कि बिहार सुधरा लेकिन हम बिहारियों कि मानसिकता नहीं ...जी हाँ मैं कर रहा हूँ बिहार राज्य पथ परिवहन निगम कि, मैंने अखबारों में पढ़ा कि बिहार राज्य पथ निगम ने निजी बसों को भी अपने अन्दर ले लिया है, काफी ख़ुशी हुयी थी, मुझे भागलपुर से समस्तीपुर जाना था, मैंने सोचा कि इस बार बस से ही यात्रा करूँ शायद कुछ नया देखने को मिल जाय, लेकिन स्थिति वही थी जो पांच साल पहले देख कर आया था, करीब दिन के 11 बजे बस स्टार्ट हुआ और शाम के 5:30 बजे मैं बेगुसराय पंहुचा, वजह यह थी कि बस वाले जहा-तहां छोटे-छोटे स्तेंदों में बस खड़ा कर चाय-पानी-पान और लम्बी-लम्बी हांकने में लगे रहते थे, इतना ही नहीं झूठ बोल-बोल कर यात्री को भेड़-बकरियों कि तरह बस में ठुसे जा रहे थे, वहां से मैंने समस्तीपुर के लिए बस ली जबकि दुरी करीब एक सौ किलोमीटर होगी और करीब 9 बजे समस्तीपुर पंहुचा .......आजिज हो गया और गुस्से में सोच लिया अब बिहार में बस से यात्रा नहीं करूँगा....मैं तो यह सोच कर बस कि यात्रा कि की शायद सड़के सुधरी है और सरकारी बस है कुछ तो दुरुस्त हुआ होगा पहले से जैसा की अखबारों में पढ़ा था, लेकिन बड़ा कड़वा और दुखद अनुभव रहा यात्रा का. अब आप बताइए क्या यही सुशासन है ? मौका लगे तो कभी आकर देखिये दक्षिण भारत के बसों की स्थिति ...समझ में आ जायेगा की अब भी बिहार कितना पिछड़ा हुआ है इन मामलों में..जो मित्र दक्षिण भारत में रहते हैं उन्हें और घूमते हैं उन्हें इस बात का जरुर अनुभव होगा की बिहार में क्या बदलाव हुआ है ट्रांसपोर्ट सेवा के मामले में ..... `
मेरी बिहार यात्रा पार्ट-2

गरीबी का मजाक उडाता गरीब रथ !!

जी हाँ मैं जब पटना से भागलपुर जा रहा था गरीब रथ से मुझे बड़ा अजीब सा लगा ..जहाँ किसी भी एक्सप्रेस के सकें स्लीपर में भी एक निचे वाले बर्थ पर तीन लोगों के बैठने की जगह होती है वही गरीब रथ में चार नंबर अनिक्त था ....चुकी मैं सुबह-सुबह ट्रेन में बैठा था तो मैंने देखा की मेरे बर्थ पर एक भाई साहेब सोये हुए थे, मैंने उन्हें बिना डिस्टर्ब किये बगल में किसी तरह बैठा गया, शायद उस भाई साहेब (यात्री) को तकलीफ हुयी होगी उन्होंने पूछा आपका रिजर्वेशन है क्या मैंने कहा हाँ आप मेरी बर्थ पर सो रहे हो ..उन्होंने कहा नहीं ये मेरा बर्थ है, फिर मैं उसी बोगी में टिकट चेक कर रहे टीटीइ के पास पंहुचा और उन्हें बताया की मेरे बर्थ पर कोई और यात्री दावा कर रहा है, उन्होंने मेरा टिकट देखा और कहा वह बर्थ आप दोनो का है यह बात मेरे भेजे में नहीं उतरी मैंने पूछा की मेरा सिट नंबर इतना है और लोवर बर्थ है उन्होंने कहा भाई साहेब वही बैठ जाइये ये गरीब रथ है कोई एक्सप्रेस का एसी बोगी नहीं..इस ट्रेन में ऐसा ही होता है, मुझे उनकी बातों पर यकीं नहीं हुआ मैं उस यात्री की टिकट देखि सबकुछ वही था जो मेरे टिकट में था..खैर, मैं चुपचाप वहां बैठ गया, उमस भरी गर्मी थी मेरा पसीना सुख ही नहीं रहा था , करीब आधे घंटे बाद मैंने मेंटेन करने वाले सदस्य से पूछ की एसी कम क्यों है तेज करो तो उन्होंने जवाब दिया भैया पहली बार गरीब रथ में चढ़े हो क्या ? ये भी मिल रहा है बहुत है यकीं मानिये एसी चल ही नहीं रहा था और मेरे आसपास बैठे लोग यही कह रहे थे रात भर गर्मी से परेशान रहे वो लोग, खैर पंखे ने उनोलोगों की जान बचायी, साफ़-सफाई तो बिलकुल नगण्य थी, जहा-तहां खाने-पिने की सामग्री फेकी हुयी थी....कागज-पेपर और ठोंगे जहा-तह फैले हुए था...एक बोगी में तो बेसिन का पानी गेट से होते हुए सिट के निचे फ़ैल रहा था...ज्यों-ज्यों ट्रेन आगे बढती गयी त्यों-त्यों आमलोगों की भीड़ भी ट्रेन में बेबाक सवार होती गयी, जैसे मनो को डीएम्यु ट्रेन हो...कुछ देर बाद मैं शौचालय गया वह पानी ही नहीं था, बेसिन में भी पानी नहीं..धीरे-धीरे माजरा समझ में आने लगा.. कुछ लोगों के बातचीत से यह समझ में आया की इस ट्रेन में अधिकाँश वैसे ही लोग यात्रा कर रहे थे जिनको अन्य ट्रेन में टिकट नहीं मिली थी. कुव्यवस्था के बिच चल रही यह गरीब रथ ..केवल गरीबी का मजाक ही उदा रही है..सुविधा के नाम पर केवल बंद शीशे और पंखों के अलवा कुछ भी नहीं दिखा इस रथ में ......जबकि सरकार सुविधा के नाम पर पैसा वसूलती है ....

Monday 7 May 2012

हम (बिहारियों) ने पूरे देश को संवारा है चाहे मुम्बई हो या दिल्ली, पंजाब हो या हरियाणा देश का शायद ऐसा कोई राज्य नहीं होगा, जहाँ के विकास में हमारा योगदान नहीं रहा है i हम (बिहारियों) ने अपना खून-पसीना बहाया है इन शहरों को सजाने और इनके चौमुखी विकास में i किसी कारणवश माता लक्ष्मी हम बिहारियों से ज्यादा खुश नहीं रहती हैं... हाँ , लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं की पूरे भारत में माँ सरस्वती की सबसे अधिक आशीर्वाद बिहारियों के साथ ही है i इसलिए तो हम अपनी प्रतिभा से पूरे दुनिया को समय-समय पर लोहा मनवाते रहते हैं i हम ज्ञान के मामले में किसी भी राज्य से पीछे नहीं है , आखिर पीछे क्यों रहे, ज्ञान लेने के लिए तो गौतम बुद्ध भी बिहार ही आये थे i हम मेहनती हैं किसी भी शहर के कल-कारखाने को देख लीजिये i हमारी मेहनत का सही अंदाजा वहां के आंकड़ो से लगाया जा सकता है i हमारी सभ्यता -संस्कृति ऐसी है की हम बोलचाल की भाषा में "मैं " शब्द का उपयोग नहीं करते हैं, मतलब हम बहुत अधिक स्वार्थी नहीं है...... इसलिए हम (बिहारी) हमेशा "हम " शब्द का इस्तेमाल करते हैं मतलब सिर्फ मैं नहीं सभी लोग i हमें संघर्ष करना आता है हम मुसीबतों से घबराते नहीं हैं बल्कि उसका मुकाबला करते हैं i कई राज्यों में किसान, मजदुर और कर्जदार आत्महत्या करते हैं , लेकिन बिहारी हालत से हार कर कभी आत्महत्या नहीं करता है i अब बिहार बदल रहा है , बिहार विकास के पथ पर अग्रसर है i वक्त आ गया है अब हमें अपने बिहार को सँवारने की i आइये हम सब बिहारी मिलकर अपनी खूबियों के साथ बिहार के विकास में हर संभव योगदान दे i
जय जननी , जय बिहार, जय भारत !!