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Thursday 24 May 2012

सिल्क उद्योग का दर्द -3

डीएसपी मेहरा काण्ड से सरकार और बुनकरों के बिच बढती गयी दूरियां :(

बात 1987 की है, जब बिजली की मांग को लेकर "पावरलूम विभर्स एसोशिएशन" का आन्दोलन काफी तेज हो गया था, जिसका नेतृत्व अवध किशोर, नेजाहत अंसारी जैसे बुनकर नेता कर रहे थे, उसका कोई स्थाई समाधान नहीं निकला, सरकारी प्रतिनिधियों का कहना था की बिल का भुगतान नहीं किया जा रहा है, जबकि बुनकरों का कहना था की बिजली ही नहीं मिल रही है और बिजली विभाग मनमाना बिल भेज रही है, इसी साल के अंत में चम्पानगर की बिजली जो सिटिएस से आ रही थी उसके तार को काट दिया गया, जिससे चम्पानगर समेत दर्जनों मोहल्ले में बिजली संकट उत्पन्न हो गया, बिजली नहीं आने के कारन बुनकरों की स्थिति दयनीय हो गयी, बुनकरों ने "पावरलूम विभर्स एसोशिएशन" के बेनर तले आन्दोलन को और तेज कर दिया, इसी क्रम में 10 जनवरी 1987 को पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत बुनकरों की विशाल रैली चमपानगर सहित दर्जनों इलाके से निकलते हुए नाथनगर चौराहे स्थित सुभाष चन्द्र बोस चौक की तरफ बढ़ रही थी, इस से पूर्व ही अनुमान के आधार पर कई बड़े बुनकर नेताओं को एक दिन पूर्व ही हिरासत में ले लिया गया था, विधि व्यवस्था की कमान वहा के तत्कालीन डीएसपी सुखदेव मेहरा संभाले हुए थे, श्री मेहरा ने मनास्कमना नाथ चौक पर आन्दोलनकारी भीड़ को रोकने का प्रयास किया, लेकिन आक्रोशित भीड़ भला कहा रुकने वाली थी, इसी क्रम में फायरिंग शुरू हो गयी, जिसमे शशि और जाहांगीर नामक बुनकर की गोली लगने से मौत हो गयी, इसके बाद क्या आक्रोशित भी इस कदर बेकाबू हुयी की डीएसपी मेहरा को जिप (उनकी गाडी, जिस पर वो सवार थे ) सहित जला कर उनकी हत्या कर दी गयी, यह घटना सुनते ही जिला प्रशाशन के आलाधिकारी मौके पर पहुचे और कई बुनकर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ! यह घटना भागलपुर के लिए कला दिन जैसा था, इसके बाद सरकारी प्रतिनिधयों के बिच दुरी बढती चली गयी, कई बुनकर नेता ने जेल की सजा काटी और अब तक यह मामला आदालत में लम्बित है, इस घटना के बाद मानो सिल्क उद्योग पर ग्रहण ही लग गया .....

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