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मेरी बिहार यात्रा पार्ट-3
जैसा की मैंने आपलोगों को बताया था कि बिहार सुधरा लेकिन हम बिहारियों कि
मानसिकता नहीं ...जी हाँ मैं कर रहा हूँ बिहार राज्य पथ परिवहन निगम कि,
मैंने अखबारों में पढ़ा कि बिहार राज्य पथ निगम ने निजी बसों को भी अपने
अन्दर ले लिया है, काफी ख़ुशी हुयी थी, मुझे भागलपुर से समस्तीपुर जाना था,
मैंने सोचा कि इस बार बस से ही यात्रा करूँ शायद कुछ नया देखने को मिल
जाय, लेकिन स्थिति वही थी जो पांच साल
पहले देख कर आया था, करीब दिन के 11 बजे बस स्टार्ट हुआ और शाम के 5:30 बजे
मैं बेगुसराय पंहुचा, वजह यह थी कि बस वाले जहा-तहां छोटे-छोटे स्तेंदों
में बस खड़ा कर चाय-पानी-पान और लम्बी-लम्बी हांकने में लगे रहते थे, इतना
ही नहीं झूठ बोल-बोल कर यात्री को भेड़-बकरियों कि तरह बस में ठुसे जा रहे
थे, वहां से मैंने समस्तीपुर के लिए बस ली जबकि दुरी करीब एक सौ किलोमीटर
होगी और करीब 9 बजे समस्तीपुर पंहुचा .......आजिज हो गया और गुस्से में सोच
लिया अब बिहार में बस से यात्रा नहीं करूँगा....मैं तो यह सोच कर बस कि
यात्रा कि की शायद सड़के सुधरी है और सरकारी बस है कुछ तो दुरुस्त हुआ होगा
पहले से जैसा की अखबारों में पढ़ा था, लेकिन बड़ा कड़वा और दुखद अनुभव रहा
यात्रा का. अब आप बताइए क्या यही सुशासन है ? मौका लगे तो कभी आकर देखिये
दक्षिण भारत के बसों की स्थिति ...समझ में आ जायेगा की अब भी बिहार कितना
पिछड़ा हुआ है इन मामलों में..जो मित्र दक्षिण भारत में रहते हैं उन्हें और
घूमते हैं उन्हें इस बात का जरुर अनुभव होगा की बिहार में क्या बदलाव हुआ
है ट्रांसपोर्ट सेवा के मामले में ..... `
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