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Tuesday 29 May 2012

अनाथालय में खाना खिलाने से बेहतर है बच्चो का भविष्य संवारे :))

कुछ लोग ख़ुशी और गम के मौके पर अनाथालय जाकर बच्चों को खाना खिलाते हैं, ताकि उन्हें उन बच्चों की दुआ मिल सके, यक़ीनन यह एक अच्छा कार्य है, लेकिन मैं इसका व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता हूँ, जहाँ तक मैं जानता हूँ की अनाथालय में सरकार के दुवारा बच्चों के भोजन की सुविधा मुहैया करायी जाती है, इसके अलावा हमारे-आपके तरह बहुत सारे लोगों की सोच खाना खिलाने की होती है, मैंने देखा है अनाथालय में एक-एक दिन में दस -दस परिवार के लोग खाना खिलाने पहुचते हैं, खासकर पर्व-त्यौहार में,...... मैं ऐसे लोगो की भावना की क़द्र करता हूँ, लेकिन जरा सोचिये की एक दिन में बच्चे कितने बार खायेंगे ?? खाना खिलाने का क्या इम्पेक्ट होगा ? क्यों ना हम उस पैसे से पढे-लिखाई का सामान, नोट बुक, स्टेशनरी, किताब आदि सामानों को खरीद कर दे, जरा सोचिये अगर हम एक हजार रूपये खाना खिलाने में खर्च करते हैं वह तनिक क्षण भर के लिए होता है, लेकिन इसके बदले उन्हें एक हजार रूपये की स्टेशनरी खरीद कर दे तो वह कितने दिनों तक चलेगा और यह सामान उन अनाथ बच्चों का भविष्य संवार सकता है , क्या हमें क्षणिक ख़ुशी और संतुष्टि के लिए कुछ दान देना चाहिए या ऐसे चीजो को प्रोमोट करना चाहिए जो उन्हें इस लायक बनाने में मदद कर सके जिस से की वो भविष्य में खुद कमा सके और खा सके...

Thursday 24 May 2012

सिल्क उद्योग का दर्द -3

डीएसपी मेहरा काण्ड से सरकार और बुनकरों के बिच बढती गयी दूरियां :(

बात 1987 की है, जब बिजली की मांग को लेकर "पावरलूम विभर्स एसोशिएशन" का आन्दोलन काफी तेज हो गया था, जिसका नेतृत्व अवध किशोर, नेजाहत अंसारी जैसे बुनकर नेता कर रहे थे, उसका कोई स्थाई समाधान नहीं निकला, सरकारी प्रतिनिधियों का कहना था की बिल का भुगतान नहीं किया जा रहा है, जबकि बुनकरों का कहना था की बिजली ही नहीं मिल रही है और बिजली विभाग मनमाना बिल भेज रही है, इसी साल के अंत में चम्पानगर की बिजली जो सिटिएस से आ रही थी उसके तार को काट दिया गया, जिससे चम्पानगर समेत दर्जनों मोहल्ले में बिजली संकट उत्पन्न हो गया, बिजली नहीं आने के कारन बुनकरों की स्थिति दयनीय हो गयी, बुनकरों ने "पावरलूम विभर्स एसोशिएशन" के बेनर तले आन्दोलन को और तेज कर दिया, इसी क्रम में 10 जनवरी 1987 को पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत बुनकरों की विशाल रैली चमपानगर सहित दर्जनों इलाके से निकलते हुए नाथनगर चौराहे स्थित सुभाष चन्द्र बोस चौक की तरफ बढ़ रही थी, इस से पूर्व ही अनुमान के आधार पर कई बड़े बुनकर नेताओं को एक दिन पूर्व ही हिरासत में ले लिया गया था, विधि व्यवस्था की कमान वहा के तत्कालीन डीएसपी सुखदेव मेहरा संभाले हुए थे, श्री मेहरा ने मनास्कमना नाथ चौक पर आन्दोलनकारी भीड़ को रोकने का प्रयास किया, लेकिन आक्रोशित भीड़ भला कहा रुकने वाली थी, इसी क्रम में फायरिंग शुरू हो गयी, जिसमे शशि और जाहांगीर नामक बुनकर की गोली लगने से मौत हो गयी, इसके बाद क्या आक्रोशित भी इस कदर बेकाबू हुयी की डीएसपी मेहरा को जिप (उनकी गाडी, जिस पर वो सवार थे ) सहित जला कर उनकी हत्या कर दी गयी, यह घटना सुनते ही जिला प्रशाशन के आलाधिकारी मौके पर पहुचे और कई बुनकर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ! यह घटना भागलपुर के लिए कला दिन जैसा था, इसके बाद सरकारी प्रतिनिधयों के बिच दुरी बढती चली गयी, कई बुनकर नेता ने जेल की सजा काटी और अब तक यह मामला आदालत में लम्बित है, इस घटना के बाद मानो सिल्क उद्योग पर ग्रहण ही लग गया .....

Wednesday 23 May 2012

सिल्क उद्योग का दर्द -2
यार्न बेंक का सपना अधुरा ...
इस शहर के रेशम उद्योग के पिछड़ने का एक सबसे बड़ा कारण यहाँ यार्न बेंक (सूत बेंक) की स्थापना नहीं होना है, बुनकरों को सूत/धागे दुसरे राज्यों/देशों से आयात करना पड़ता है, जो काफी महंगा पड़ रहा है, प्राप्त जानकारी के अनुसार रेशम सूत/धागे पर सरकार का इतना अधिक टेक्स/कर है कि बुनकरों को मज़बूरी में यह कालाबाजारी में खरीदारी करनी पड़ती है, क्योंकि सरकार के दुवारा सूत/धागा मुहेया नहीं कराया जा रहा है और ना ही वर्तमान सरकार ने इस दिशा में सार्थक पहल की है, नतीजा बुनकरों की मज़बूरी का फायदा उठा कर अभी भी भागलपुर में सिल्क धागों की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है, ख़ास कर चयन कोरिया कि तस्करी का धंधा जोरों पर है और बहुत बार ऐसा होता है की पार्टी दुवारा ऑर्डर मिलने के बाद भी धागा उपलब्ध नहीं होने के कारण बुनकर सही समय पर माल तेयार कर पार्टी को नहीं दे पाते हैं, आपको यकीन नहीं होगा कि सिल्क के तस्करी कर के बहुत सारे लोगों ने करोडो में काला धन अर्जित किया है, खैर, बुनकरों को सही कीमत पर धागा नहीं मिलने के कारण भी सिल्क उद्योग पर खतरा मंडरा रहा है, जब नितीश जी सरकार आई तो अख़बारों में यह समाचार पढने को मिला कि सरकार बुनकरों को सरकारी दरों पर सूत मुहेया कराएगी और इसी जिले के कहलगांव क्षेत्र में अप्रेल पार्क बनेगा, लेकिन ये बाते सिर्फ अखबारों के पन्नो और घोषणाओ तक सिमट कर रह गयी, अगर बुनकरों को सरकारी दरों पर सूत मुहेया कराया जाता तो निश्चित तौर पर इस उद्योग को काफी मदद मिलती, लेकिन यार्न बेंक स्थापना नहीं होना भी इस उद्योग कि बर्बादी के एक महतवपूर्ण कारणों में से एक है ......

Tuesday 22 May 2012

सिल्क उद्योग का दर्द -1

रेशमी शहर के नाम से मशहूर भागलपुर में तसर की खेती बड़े पैमाने पर होती थी, यहाँ शहतूत के पेड़ पर रेशम कीट का पालन होता था, रेशम कीट के मुह से निकलने वाली लार से कोकून तेयार होता था और उस से चरखे के माध्यम से तसर धागा तेयार होता था, इस से तेयार होने वाली तसर सिल्क भारत ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में चर्चित है, इस सिल्क ने रेशम वस्त्र उद्योग में अपनी गहरी पैठ बनायीं, करीब दो दशक पूर्व भागलपुर के बुनकरों दुवारा तेयार किया गए इस कपडे की एक अलग ही पहचान थी, तसर सिल्क के अंतर्गत मटका, घिच्चा, कटिया आदि आता था, नब्बे के दशक तक सिल्क वस्त्र उद्योग में भागलपुरी तसर सिल्क का दबदबा रहा , स्थानीय बुनकरों की माने तो उनके दुवारा तेयार किये गए रेशमी वस्त्र की मांग बाजारों में काफी अधिक थी, तब बुनकर इसे हस्तकरघा में तेयार करते थे, यहाँ के बुनकरों की कला भी अपने आप में निराली थी, लेकिन नब्बे के दशक के बाद विश्व बाजार में इसकी मांग घटने लगी इसकी वजह यहाँ खेती का दायरा सिमटता चला गया, सरकार की उदासीनता और रेशम कीट पालकों को प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण धीरे-धीरे किसानो की रूचि घटती चली गयी, इसकी स्पर्धा में बेंगलूर और उत्तर प्रदेश के कुछ शहर आगे निकल गया, क्योंकि वहा सरकार ने इस उद्योग को प्रोत्साहित किया, स्थिति यह हो गयी की रेशम कीट पालन अब सिर्फ यहाँ स्थित रेशम संसथान में होने लगा वह भी बुनकरों को प्रसिक्षण देने के लिए और वहा के क्षत्रों के प्रायोगिक कक्षाओं के लिए ! समय और प्रतिस्पर्धा के कारण धीरे-धीरे हस्तकरघा की जगह पावरलूम ने ले लिया, पावरलूम के आने के बाद उत्पादन में तो वृद्धि हुयी, लेकिन गुणवत्ता में भी गिरावट आई, वर्तमान समय में जिस रेशम के लिए यह शहर मशहूर था, वहां नाम मात्र इसका उत्पादन होता है, मिली जानकारी के अनुसार अभी बड़े पैमाने पर इस धागे का आयत किया जाता है, हालाँकि वर्तमान नितीश सरकार ने भी इस उद्योग को सँवारने में कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई है .....

Wednesday 9 May 2012

BSRTC
मेरी बिहार यात्रा पार्ट-3

जैसा की मैंने आपलोगों को बताया था कि बिहार सुधरा लेकिन हम बिहारियों कि मानसिकता नहीं ...जी हाँ मैं कर रहा हूँ बिहार राज्य पथ परिवहन निगम कि, मैंने अखबारों में पढ़ा कि बिहार राज्य पथ निगम ने निजी बसों को भी अपने अन्दर ले लिया है, काफी ख़ुशी हुयी थी, मुझे भागलपुर से समस्तीपुर जाना था, मैंने सोचा कि इस बार बस से ही यात्रा करूँ शायद कुछ नया देखने को मिल जाय, लेकिन स्थिति वही थी जो पांच साल पहले देख कर आया था, करीब दिन के 11 बजे बस स्टार्ट हुआ और शाम के 5:30 बजे मैं बेगुसराय पंहुचा, वजह यह थी कि बस वाले जहा-तहां छोटे-छोटे स्तेंदों में बस खड़ा कर चाय-पानी-पान और लम्बी-लम्बी हांकने में लगे रहते थे, इतना ही नहीं झूठ बोल-बोल कर यात्री को भेड़-बकरियों कि तरह बस में ठुसे जा रहे थे, वहां से मैंने समस्तीपुर के लिए बस ली जबकि दुरी करीब एक सौ किलोमीटर होगी और करीब 9 बजे समस्तीपुर पंहुचा .......आजिज हो गया और गुस्से में सोच लिया अब बिहार में बस से यात्रा नहीं करूँगा....मैं तो यह सोच कर बस कि यात्रा कि की शायद सड़के सुधरी है और सरकारी बस है कुछ तो दुरुस्त हुआ होगा पहले से जैसा की अखबारों में पढ़ा था, लेकिन बड़ा कड़वा और दुखद अनुभव रहा यात्रा का. अब आप बताइए क्या यही सुशासन है ? मौका लगे तो कभी आकर देखिये दक्षिण भारत के बसों की स्थिति ...समझ में आ जायेगा की अब भी बिहार कितना पिछड़ा हुआ है इन मामलों में..जो मित्र दक्षिण भारत में रहते हैं उन्हें और घूमते हैं उन्हें इस बात का जरुर अनुभव होगा की बिहार में क्या बदलाव हुआ है ट्रांसपोर्ट सेवा के मामले में ..... `
मेरी बिहार यात्रा पार्ट-2

गरीबी का मजाक उडाता गरीब रथ !!

जी हाँ मैं जब पटना से भागलपुर जा रहा था गरीब रथ से मुझे बड़ा अजीब सा लगा ..जहाँ किसी भी एक्सप्रेस के सकें स्लीपर में भी एक निचे वाले बर्थ पर तीन लोगों के बैठने की जगह होती है वही गरीब रथ में चार नंबर अनिक्त था ....चुकी मैं सुबह-सुबह ट्रेन में बैठा था तो मैंने देखा की मेरे बर्थ पर एक भाई साहेब सोये हुए थे, मैंने उन्हें बिना डिस्टर्ब किये बगल में किसी तरह बैठा गया, शायद उस भाई साहेब (यात्री) को तकलीफ हुयी होगी उन्होंने पूछा आपका रिजर्वेशन है क्या मैंने कहा हाँ आप मेरी बर्थ पर सो रहे हो ..उन्होंने कहा नहीं ये मेरा बर्थ है, फिर मैं उसी बोगी में टिकट चेक कर रहे टीटीइ के पास पंहुचा और उन्हें बताया की मेरे बर्थ पर कोई और यात्री दावा कर रहा है, उन्होंने मेरा टिकट देखा और कहा वह बर्थ आप दोनो का है यह बात मेरे भेजे में नहीं उतरी मैंने पूछा की मेरा सिट नंबर इतना है और लोवर बर्थ है उन्होंने कहा भाई साहेब वही बैठ जाइये ये गरीब रथ है कोई एक्सप्रेस का एसी बोगी नहीं..इस ट्रेन में ऐसा ही होता है, मुझे उनकी बातों पर यकीं नहीं हुआ मैं उस यात्री की टिकट देखि सबकुछ वही था जो मेरे टिकट में था..खैर, मैं चुपचाप वहां बैठ गया, उमस भरी गर्मी थी मेरा पसीना सुख ही नहीं रहा था , करीब आधे घंटे बाद मैंने मेंटेन करने वाले सदस्य से पूछ की एसी कम क्यों है तेज करो तो उन्होंने जवाब दिया भैया पहली बार गरीब रथ में चढ़े हो क्या ? ये भी मिल रहा है बहुत है यकीं मानिये एसी चल ही नहीं रहा था और मेरे आसपास बैठे लोग यही कह रहे थे रात भर गर्मी से परेशान रहे वो लोग, खैर पंखे ने उनोलोगों की जान बचायी, साफ़-सफाई तो बिलकुल नगण्य थी, जहा-तहां खाने-पिने की सामग्री फेकी हुयी थी....कागज-पेपर और ठोंगे जहा-तह फैले हुए था...एक बोगी में तो बेसिन का पानी गेट से होते हुए सिट के निचे फ़ैल रहा था...ज्यों-ज्यों ट्रेन आगे बढती गयी त्यों-त्यों आमलोगों की भीड़ भी ट्रेन में बेबाक सवार होती गयी, जैसे मनो को डीएम्यु ट्रेन हो...कुछ देर बाद मैं शौचालय गया वह पानी ही नहीं था, बेसिन में भी पानी नहीं..धीरे-धीरे माजरा समझ में आने लगा.. कुछ लोगों के बातचीत से यह समझ में आया की इस ट्रेन में अधिकाँश वैसे ही लोग यात्रा कर रहे थे जिनको अन्य ट्रेन में टिकट नहीं मिली थी. कुव्यवस्था के बिच चल रही यह गरीब रथ ..केवल गरीबी का मजाक ही उदा रही है..सुविधा के नाम पर केवल बंद शीशे और पंखों के अलवा कुछ भी नहीं दिखा इस रथ में ......जबकि सरकार सुविधा के नाम पर पैसा वसूलती है ....

Monday 7 May 2012

हम (बिहारियों) ने पूरे देश को संवारा है चाहे मुम्बई हो या दिल्ली, पंजाब हो या हरियाणा देश का शायद ऐसा कोई राज्य नहीं होगा, जहाँ के विकास में हमारा योगदान नहीं रहा है i हम (बिहारियों) ने अपना खून-पसीना बहाया है इन शहरों को सजाने और इनके चौमुखी विकास में i किसी कारणवश माता लक्ष्मी हम बिहारियों से ज्यादा खुश नहीं रहती हैं... हाँ , लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं की पूरे भारत में माँ सरस्वती की सबसे अधिक आशीर्वाद बिहारियों के साथ ही है i इसलिए तो हम अपनी प्रतिभा से पूरे दुनिया को समय-समय पर लोहा मनवाते रहते हैं i हम ज्ञान के मामले में किसी भी राज्य से पीछे नहीं है , आखिर पीछे क्यों रहे, ज्ञान लेने के लिए तो गौतम बुद्ध भी बिहार ही आये थे i हम मेहनती हैं किसी भी शहर के कल-कारखाने को देख लीजिये i हमारी मेहनत का सही अंदाजा वहां के आंकड़ो से लगाया जा सकता है i हमारी सभ्यता -संस्कृति ऐसी है की हम बोलचाल की भाषा में "मैं " शब्द का उपयोग नहीं करते हैं, मतलब हम बहुत अधिक स्वार्थी नहीं है...... इसलिए हम (बिहारी) हमेशा "हम " शब्द का इस्तेमाल करते हैं मतलब सिर्फ मैं नहीं सभी लोग i हमें संघर्ष करना आता है हम मुसीबतों से घबराते नहीं हैं बल्कि उसका मुकाबला करते हैं i कई राज्यों में किसान, मजदुर और कर्जदार आत्महत्या करते हैं , लेकिन बिहारी हालत से हार कर कभी आत्महत्या नहीं करता है i अब बिहार बदल रहा है , बिहार विकास के पथ पर अग्रसर है i वक्त आ गया है अब हमें अपने बिहार को सँवारने की i आइये हम सब बिहारी मिलकर अपनी खूबियों के साथ बिहार के विकास में हर संभव योगदान दे i
जय जननी , जय बिहार, जय भारत !!