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Tuesday 22 May 2012

सिल्क उद्योग का दर्द -1

रेशमी शहर के नाम से मशहूर भागलपुर में तसर की खेती बड़े पैमाने पर होती थी, यहाँ शहतूत के पेड़ पर रेशम कीट का पालन होता था, रेशम कीट के मुह से निकलने वाली लार से कोकून तेयार होता था और उस से चरखे के माध्यम से तसर धागा तेयार होता था, इस से तेयार होने वाली तसर सिल्क भारत ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में चर्चित है, इस सिल्क ने रेशम वस्त्र उद्योग में अपनी गहरी पैठ बनायीं, करीब दो दशक पूर्व भागलपुर के बुनकरों दुवारा तेयार किया गए इस कपडे की एक अलग ही पहचान थी, तसर सिल्क के अंतर्गत मटका, घिच्चा, कटिया आदि आता था, नब्बे के दशक तक सिल्क वस्त्र उद्योग में भागलपुरी तसर सिल्क का दबदबा रहा , स्थानीय बुनकरों की माने तो उनके दुवारा तेयार किये गए रेशमी वस्त्र की मांग बाजारों में काफी अधिक थी, तब बुनकर इसे हस्तकरघा में तेयार करते थे, यहाँ के बुनकरों की कला भी अपने आप में निराली थी, लेकिन नब्बे के दशक के बाद विश्व बाजार में इसकी मांग घटने लगी इसकी वजह यहाँ खेती का दायरा सिमटता चला गया, सरकार की उदासीनता और रेशम कीट पालकों को प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण धीरे-धीरे किसानो की रूचि घटती चली गयी, इसकी स्पर्धा में बेंगलूर और उत्तर प्रदेश के कुछ शहर आगे निकल गया, क्योंकि वहा सरकार ने इस उद्योग को प्रोत्साहित किया, स्थिति यह हो गयी की रेशम कीट पालन अब सिर्फ यहाँ स्थित रेशम संसथान में होने लगा वह भी बुनकरों को प्रसिक्षण देने के लिए और वहा के क्षत्रों के प्रायोगिक कक्षाओं के लिए ! समय और प्रतिस्पर्धा के कारण धीरे-धीरे हस्तकरघा की जगह पावरलूम ने ले लिया, पावरलूम के आने के बाद उत्पादन में तो वृद्धि हुयी, लेकिन गुणवत्ता में भी गिरावट आई, वर्तमान समय में जिस रेशम के लिए यह शहर मशहूर था, वहां नाम मात्र इसका उत्पादन होता है, मिली जानकारी के अनुसार अभी बड़े पैमाने पर इस धागे का आयत किया जाता है, हालाँकि वर्तमान नितीश सरकार ने भी इस उद्योग को सँवारने में कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई है .....

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