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Saturday 1 September 2012

तिरुपति बालाजी, भक्त और तीन सौ रूपये !!


सिनेमा-सर्कस देखने को टिकट लगता है तो बात समझ में आती है क्योंकि वह व्यापार है ! लेकिन अपने ईश्वर से मुलाकात के लिए भी पैसा देना सुनकर आपको थोडा अटपटा लगता होगा ! लेकिन यह सच है जी हाँ भारत के सबसे धनी देवता तिरुपति यूँ ही अकूत संपत्ति के मालिक नहीं बन गए बल्कि उनके दर्शन के लिए भक्तों से वसूले जा रहे पैसों से भी तिरुमला ट्रस्ट को अच्छी खासी इनकम होती है ! मुझे संयोग से मेरे मित्रों के साथ वहाँ जाने का मौका मिला ! लेकिन मैंने तिरुपति बालाजी का दर्शन नहीं किया ! क्योंकि वहाँ दर्शन के लिए तीन सौ रूपये का टिकट कटाना अनिवार्य था ! पहले आठ से दस घंटे लाइन लगो फिर तीन सौ रूपये के टिकट लो फिर बालाजी का दर्शन करो ! हालाँकि बिना टिकट कटाने वालों को बालाजी के दर्शन के लिए दो-तीन दिन तक लाइन में खड़े रहना पड़ता है ! ये बात मुझे नागवार गुजरी, मेरे मन में ये सवाल उठने लगा की यह रिश्वत नहीं तो और क्या है ? आखिर मैं भगवान के दर्शन के लिए तीन सौ रूपये क्यों दूँ ! मैंने दर्शन नहीं करने की ठान ली, मेरे दोस्तों ने मुझे काफी समझाया लेकिन मेरी अंतरात्मा इस बात के लिए तेयार नहीं हुई ! जब लोग  कहते हैं की वो सब जगह हैं तो मैं कहीं से भी आराधना कर सकता हूँ ! मैंने मंदिर के बाहर से ही भगवान को प्रणाम किया ! मुझे दुःख इस बात को लेकर हुयी की आखिर भगवान के दर्शन के लिए भी पैसे क्यों ? मेरे इस बात से मेरे परचित मुझे नास्तिक की संज्ञा देंगे, लेकिन मुझे इसका मलाल नहीं क्योंकि मैंने कुछ गलत नहीं किया ! हालाँकि की ट्रस्ट चलने के लिए पैसों की जरुरत होती है ! वहाँ भक्तों को जो सुविधाए मुहैया कराई जाती है और मेंटेनेंस में प्रतिदिन लाखों का खर्च आता है वह आखिर कहाँ से आएगा ! लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं की आप सभी से एक समान वसूली करो ! भगवान के दर पर तो हर तबके के लोग जाते हैं फिर सबके लिए टिकट जरुरी क्यों ? और दान या चंदा का क्या मतलब होता है ! जो खुशी से दे वही दान/चंदा होता है ना की फिक्स कोई रेट ! अगर आप रेट फिक्स करते हो तो वह प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से व्य्यापार नहीं तो और क्या है ! जो सक्षम लोग हैं उनसे ही पैसा लिया जाय ! अब जो उस लायक नहीं है उसके लिए भी यह अनिवार्य नहीं होना चाहिए ! लोगों की असीम श्रद्धा है इसलिए लोग बिना किसी सवाल जवाब के तीन सौ रूपये देकर दर्शन करने को मजबूर हैं ! अजीब बात यह है की सरकार भी इन ट्रस्ट के सख्त नियमों पर कोई ध्यान नहीं देती !

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